शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

नयनो से नीर



नयनो  से नीर 
जाने क्या हुआ इन नयनो को ,
बस ये नीर नहाये जाते है..
कहती हूँ जब बहाओ इन्हें ऐसे,
तो कहते है सैलाब रोके रोके जाते है..
तोडती हों क्यों फालतू में अपने दिल को,
रोकती हों इन्हें किस खास के लिए...
बहने दो इन नादानों को,
क्यूंकि बहते है ये जिसके लिए...
उन्हें तो और मुकाम मिल जाते है,
साल दर साल टूटे हो जिस ख्वाब के लिए..
वो तो मोती की तरह बिखरे जाते है...
किस किस मुकाम  को तरासती  रहोगी,
हर मुकाम गुम हुए जाते है..
बह जाने दो इन के गम को,
नाम हो जाने दो हमको..
ये नीर है है नदी की तरह,
जो भरने पर सैलाब लिए आते है....
हम नयन है और ये हमसे बहे जाते है,
कैसे रोके अब हम ये हमसे रोके जाते है...
अब हमसे इन नयनो से नीर बहे जाते है
जाने क्या हुआ इन नयनो को...........